Ahoi ashtami vrat katha एक साहुकार के सात बेटे, सात बहुएँ एंव एक कन्या थी। उसकी बहुँए कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई माता के पूजन के लिए जंगल में अपनी ननद के साथ मिट्टी लेने के लिए गयी ।
मिट्टी निकालने के स्थान पर ही एक स्याहू की माँद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से स्याहू का बच्चा चोट खाकर मर गया।
स्याहू की माता बोली, अब मै तेरी कोख बाँधुगी अर्थात अब तुझे मै सन्तान-विहीन कर दूँगी । उसकी बात सुनकर ननद ने अपनी सभी भाभियों से अपने बदले में कोख बँधा लेने के लिए आगह किया, परन्तु उसकी सभी भाभियों ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। परन्तु उसको छोटी भाभी ने कुछ सोच-समझकर अपनी कोख बंधवाने की स्वीकृति ननद को दे दी।

तदान्तर उस भाभी को, जो भी सन्तान होती वे सात दिन के बाद ही मर जाती। एक दिन पण्डित को बुलाकर इस बात का पता लगाया गया । पण्डित ने कहा तुम काली गाय की पूजा किया करो काली गाय रिश्ते मे स्याहू की भायली लगती है।
वह यदि तेरी कोख छोड़ दे तो बच्चे जिवित रह सकते है। पण्डित की बात सुनकर छोटी बहू ने दूसरे दिन से ही काली गाय की सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। वह प्रतिदिन सुबह सवेरे उठकर गाय का गोबर आदि साफ कर देती । गाय ने अपने मन में सोचा कि, यह कार्य कौन कर रहा है, इसका पता लगाऊँगी। दूसरे दिन , गाय माता तड़के उठकर क्या देखती है कि उस स्थान पर साहुकार की एक बहु झाडू बुहारी करके सफाई कर रही है।
गऊ माता ने उस बहु से पूछा कि तु किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले । साहुकार की बहू ने कहा – स्याहू माता ने मेरी कोख बाँध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते है। यदि आप मेरी कोख खुलवा दे तो मै अपका बहुत उपकार मानूंगी । गाय माता ने उसकी बात मान ली और उससे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहू माता के पास ले चली । रास्ते में कड़ी धूप से ब्याकुल होकर दोनो एक पेड़ की छाया में बैठ गयी । ।
जिस पेड़ के नीचे वह दोनों बैठी थी उस पेड़ पर गरूड़ पक्षी का एक बच्चा रहता था। थोड़ी देर में ही एक सांप आकर उस बच्चे को मारने लगा। इस दृश्य को देखकर साहूकार की बहू ने उस साँप को मारकर एक डाल के नीचे छिपा दिया और उस गरूड़ के बच्चे को मरने से बचा लिया। इस के पश्चात् उस पक्षी की माँ ने वहाँ रक्त पड़ा देखकर साहुकार की बहू को चोंच से मारने लगीं।
तब साहूकार की बहू ने कहा – मैने तेरे बच्चे को नहीं मारा है। तेरे बच्चे को डसने के लिए एक साँप आया था मैने उसे मारकर तेरे बच्चे की रक्षा की है। मरा हुआ साँप डाल के नीचे दभा हुआ है । बहू की बातों से वह प्रसन्न हो गई और बोली – तू जो कुछ चहाती है मुझसे माँग ले । बहू ने उस से कहा – सात समुद्र पार स्याहू माता रहती है तू मुझे सउ टक पहुँचा दे। तब उस गरूड़ पंखिनी ने उन दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर समुद्र के उस पार स्याहू माता के पास पहुँचा दिया।
स्याहू माता उन्हें देखकर बोली – आ बहिन, बहुत दिनों बाद आयी है। वह पूनः बोली मेरे सिर में जूं पड़ गया है। तू उसे निकाल दे। उस काली गाय के कहने पर। साहूकार की बहू ने सिलाई से स्याहू माता की सारी जूओ को निकाल दिया। इस पर स्याहू माता अत्यन्त खुश हो गयी । स्याहू माता ने उस साहूकार की बहू से कहा – तेरे सात बेटे और सात बहुएं हो । सुनकर साहूकार की बहू ने कहा – मुझे तो एक भी बेटा नही है सात कहाँ से होगें । स्याहू माता ने पूछा – इसका कारण क्या है ? उसने कहा यदि आप वचन दें तो इसका कारण बता सकती हूँ स्याहू माता ने उसे वचन दे दिया। वचनबद्ध करा लेने के बाद साहूकार की बहू ने कहा – मेरी कोख तुम्हारे पास बन्द पड़ी है, उसे खोल दें।
स्याहू माता ने कहा – मैं तेरी बातों में आकर धोखा खा गयी । अब मुझे तेरी कोख खोलनी पड़ेगी। इतना कहने के साथ ही स्याहू माता ने कहा – अब तू घर जा । । तेरे सात बेटे और सात बहुएँ होगी । घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना ! सात सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देना । उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहाएँ बैठी हुई मिलीं। वह खुशी के मारे भाव-विभोर हो गयी।
उसने सात अहोई बनाकर सात कड़ाही देकर उद्यापन किया। इसके बाद ही दिपावली आया। उसकी जेठानियाँ परस्पर कहने लगीं -सब लोग पूजा का कार्य शीघ्र पूरा कर लो। कहीं ऐसा न हो कि, छोटी बहू अपने बच्चों का स्मरण कर रोना- धोना न शुरू कर दे। नहीं तो रंग में भंग हो जायेगा । जानकारी करने के लिए उन्होने अपने बच्चो को छोटी बहू के घर भेजा । क्योकि छोटी बहू रूदन नहीं कर रही थी। बच्चों ने घर जाकर बताया को वह वहाँ आटा गूंथ रही है और उद्यापन का कार्यक्रम चल रहा है ।
इतना सुनते ही सभी जेठानियाँ आकर उससे पूछने लगी कि, तूने अपनी कोख कैसे। खुलवायी। उसने कहा -स्याहू माता ने कृपाकर उसकी कोख खोल दी। सब लोग अहोई माता की जय-जयकार करने लगे । जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहू की कोख को खोल दिया उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियो की अभिलाषा पूर्ण करें ।
अहोई अष्टमी व्रत कथा (सेठ-सेठानी की कथा )
Ahoi ashtami vrat katha
Ahoi ashtami vrat katha किसी नगर में साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र थे। एक दिन साहूकार की पत्नी खदान मे-से खोदकर मिट्टी लाने के लिए गयी। ज्यों ही उसने मिट्टी खोदने के लिए कुगाल चलाई त्योही उसमे रह-रहे स्याऊ के बच्चे प्रहार से आहत होकर मृत हो गए।
जब साहूकार की पत्नी नै स्याऊ को रक्तरंजित देखा तो उसे बच्चो के मर जाने का अत्याधिक दुःख हुआ। परन्तु जो कुछ होना था वो हो चुका था। यह भूल उससे अनजाने में हो गयी थी। अतः दुःखी मन से वह घर लौट आई। पश्चात्तप के कारण वह मिट्टी भी नही लाई।
इसके बाद स्याहु जब घर में आई तो उसने अपने बच्चो को मृतावस्था में पाया। वह दुःख से कतार हो अत्यन्त विलाप करने लगी। उसने ईश्वर से प्रार्थना कि, जिसने मेरे बच्चो को मारा है उसे भी त्रिशोक-दुःख भुगतना पड़े। इधर स्याऊ के शाप से एक वर्ष के अन्दर ही सेठानी के सात पुत्र काल-कलवित हो गए। इस प्रकार की दुःखद घटना देखकर सेठ-सेठानी । अत्यन्त शोकाकुल हो उठे।
उस दम्पति ने किसी तीर्थ स्थान पर जाकर अपने प्राणो का विर्सजन कर देने का मन में संकल्प कर लिया। मन मे ऐसा निश्चय कर सेठ-सेठानी घर से पैदल ही तीर्थ की ओर चल पड़े। उन दोनो का शरीर पूर्ण रूप से अशक्त न हो गया तब तक वे बराबर आगे बढ़ते रहे। जब वे चलने में बिल्कुल असमर्थ हो गये,तो रास्ते में ही मूर्छित हो कर भूमि पर गिर पड़े।
उन दोनों की इस दयनीय दशा को देखकर करूणानिधि भगवान् उन पर दयार्द्र हो गये और अकाशवाणी की – ‘हे सेठ ! तेरी सेठानी ने मिट्टी खोदते समय अनजाने में ही सेही के बच्चों को मार डाला था। इस लिए तुझे भी अपने बच्चों का कष्ट सहना पड़ा।
भगवान् ने आज्ञा दी- अब तुम दोनों अपने घर जाकर गाय की सेवा करो और अहोई अष्टमी आने पर विधि-विधान पूर्वक प्रेम से अहोई माता की पूजा करो। सभी जीवों पर दया भाव रखो, किसी को अहित न करो। यदि तुम मेरे कहने के अनुसार आचरण करोगे, तो तुम्हे सन्तान सुख प्राप्त हो जायेगा।’
इस आकाशवाणी को सुनकर सेठ-सेठानी को कुछ धैर्य हुआ और वे दोनो भगवाती का सम्मरण करते हुए अपने घर को प्रस्थान किये। घर पहुंचकर उन । दोनो ने आकाशवाणी के अनुसार कार्य करन प्रारम्भ कर दिया। इसके साथ ईष्र्या-द्वेष की भावना से रहित होकर सबी प्राणियों पर करूणा का भाव रखना। प्ररम्भ कर दिया। भगवत्-कृपा से सेठ-सेठानी पुनः पुत्रवान् होकर सभी सुखो का भोग करने लगे और अन्तकाल में स्वर्गगामी हुए ।
अहोई अष्टमी माता की आरती / Shri Ahoi Mata Ji Ki Aarti
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावतहर विष्णु विधाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमलातू ही है जगमाता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
माता रूप निरंजनसुख-सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावतनित मंगल पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव प्रकाशकजगनिधि से त्राता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
जिस घर थारो वासावाहि में गुण आता ।
कर न सके सोई कर लेमन नहीं धड़काता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
तुम बिन सुख न होवेन कोई पुत्र पाता ।
खान-पान का वैभवतुम बिन नहीं आता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
शुभ गुण सुंदर युक्ताक्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोकूकोई नहीं पाता ॥
॥ जय अहोई माता..॥
श्री अहोई माँ की आरतीजो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजेपाप उतर जाता ॥
जय अहोई माता, जय अहोई माता ।