Bajrang Baan PDF in Hindi बजरंग बाण पीडीऍफ़ भावार्थः सहित

Bajrang Baan PDF in Hindi नमस्कार दोस्तों मैं आप लोगों के लिए श्री हनुमान जी की बजरंग बाण पूरी अर्थ सहित उसकी पीडीएफ लेकर आया हूं

जिसे आप यहां पर मेरे वेबसाइट में पढ़कर उसकी पीडीएफ को आप सिर्फ एक क्लिक में ही डाउनलोड कर सकते हैं

बजरंगबली अर्थात श्री हनुमान जी का जाप करने वाले लोगों के सभी प्रकार के दुख दर्द तुरंत ही दूर हो जाते हैं श्री हनुमान जी को बल बुद्धि की देवता माना गया है तथा इसकी पूजा प्रत्येक मंगलवार को विधि पूर्वक किया जाता है

आप हनुमान चालीसा पढ़ने के साथ-साथ बजरंग बाण का भी पाठ कर सकते हैं इससे आपको और अत्यधिक फायदा प्राप्त होगा

श्री हनुमान जी अपने भक्तों को सभी तरह के भाई और डर से दूर रखते हैं आप यदि बजरंगी बा एन के साथ-साथ हनुमान अष्टक का भी पाठ करते हैं तो इससे भी अचूक लाभ प्राप्त होता ही है

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बजरंग बाण पीडीऍफ़ ऑफर

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Bajrang Baan PDF in Hindi बजरंग बाण पीडीऍफ़ भावार्थः सहित

Bajrang Baan PDF in Hindi Arth Sahit बजरंग बाण अर्थ सहित

।। दोहा ।।

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

भावार्थ – यदि कोई भी व्यक्ति पक्के मन से और प्रेम के साथ श्री हनुमान जी के सामने कोई विनती करता है तो हनुमान जी उस व्यक्ति के सभी कार्यों को सफल बनाते हैं और उसका उद्धार करते हैं।

चौपाई

जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥०१॥
जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥०२॥

भावार्थ – हे प्रभु हनुमान ! आप संतों के हितों का ध्यान रखने वाले हैंअब आप हामरी भी प्राथना को सुने। आप अब अपने प्रिय भक्तों के कार्यों को करने में बिल्कुल भी देर ना करें और पवन की गति से आकर हम सभी को सुख प्रदान करें।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ॥०३॥
आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ॥०४॥

भावार्थ – जिस प्रकार आपने समुद्र में कूदकर उसे पार कर लिया था और सुरसा जैसी राक्षमी के मुंह में जाकर उसका उद्धार कर दिया था। लंका पहुंच कर आपको वहां की द्वाररक्षक लंकिनी ने रोका था लेकिन आपने उसे लात मारकर उसका भी उद्धार कर दिया था ।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥०५॥
बाग उजारी सिंधु महं बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ॥०६॥

भावार्थ इसके पश्चात आपने विभीषण के हृदय को सुख पहुंचाया और माता सीता से भेंट कर व उनकी कृपा पाकर महान कार्य किया। तत्पश्चात आपने रावण की वाटिका को पूरी तरह से उजाड़ दिया और जो राक्षस रावण ने भेजे, आपने उन्हें यमलोक भेज दिया।

अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ॥०७॥
लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुर पुर महं भई ॥०८॥

भावार्थ – आपने रावण के पुत्र अक्षय कुमार का भी वध कर दिया और संपूर्ण लंका में आग लगा दीआपके प्रभाव से लंका धू-धूकर जलने लगी और अकाश लोक से यह सब देख रहे देवतागण आपकी जय-जयकार करने लगे।

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥०९॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ॥१०॥

भावार्थ तो अब किस बात की देरी प्रभु। अपने भक्तों पर भी दया करने की कृपा करें। आपने लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की उसके लिए आपकी जय हो अब उसी प्रकार अपने भक्तों के दुखों का भी निवारण कीजिए।

जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ॥११॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले ॥१२॥

भावार्थ पर्वत को उठाने वाले हनुमान जीआपकी सदा जय होआपके अंदर समस्त देवताओं सहित भगवान विष्णु की शक्तियां निहित हैं। हे हनुमान! आप बहुत ही हठ करने वाले हो। अब मेरे शत्रुओं का नाश कर

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ॥१३॥
ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥१४॥

भावार्थ हे भगवान हनुमान! अपनी गदा के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश कर दो और अपने भक्त के सभी संकटों को दूर कर दोहे वीर हनुमानओम् की हुँकार सुनकर धावा बोल दो और अब इसमें एक क्षण की भी देरी ना करो ।

ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥१५॥
सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु धाय के ॥१६॥

भावार्थ हे कपी रुप में वीर हनुमान! अपनी गदा के प्रभाव से शत्रुओं के सिर धड़ से अलग कर दो इस बात को स्वयं नारायण कहते हैं कि उनके सभी संकटों का निवारण श्री राम के सेवक हनुमान स्वयं आकर करते

जय जय जय हनुमंत अगाधा । दु:ख पावत जन केहि अपराधा ॥१७॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥१८॥

भावार्थ – हे महाबलि हनुमान मैं हृदय से आपका स्मरण करता हूं किंतु अब आपके भक्तों को किन अपराधों का दंड मिल रहा हैंहे महाबलि हनुमान ! आपका यह भक्त पूजाध्यानतपस्या इत्यादि कुछ नहीं जानता

वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥१९॥
पांय परों कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥२०॥

भावार्थ चाहे जंगल हो या गहन वन या समुंद्र या पहाड़ या स्वयं का घर, आपके ध्यान से भक्तों को कहीं भी डर नहीं लगता हैंहे प्रभु! यहीं अवसर हैं कि मैं आपके चरणों में दंडवत प्रणाम कर आपको मनाता

जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥२१॥
बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ॥२२॥

भावार्थ – हे माँ अंजनी के पुत्र! आप अत्यधिक शक्तिशाली हैंहे महादेव के अंशावतार! आप अत्यधिक वीर हैंहे भक्त हनुमान ! आपकी ह काल के समान प्रचंड व विशालकाय हैं। आपने सदैव श्रीराम की आज्ञा का पालन किया है

भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ॥२३॥
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ॥२४॥

भावार्थ – चाहे भूत हो या प्रेत या पिशाच या कोई निशाचर, आपने इन सभी को अपनी शक्ति की अग्नि में जलाकर पाताल लोक भेज दिया हैंआपको श्रीराम के नाम की शपथ हैं कि आप इन सभी दानवों को मार कर श्रीराम के नाम की मर्यादा रख

जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥२५॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥२६॥

भावार्थ आप माता सीता के भी दास कहलाए जाते हैं। इसलिए आपको सीता माता की भी शपथ हैं कि अब इस कार्य में देर मत कीजिए। आपकी वीरता का जय-जयकार आकाश में देवतागण भी करते रहते हैंआपके स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के दुखों का नाश हो जाता

चरण शरण कर जोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ॥२७॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई । पांय परौं कर जोरि मनाई ॥२८॥

भावार्थ – मैं आपके चरण पकड़ कर अर्थात आपको दंडवत प्रणाम कर आपको मनाने का प्रयास करता हूंयहीं सही अवसर है तो देर किस बात कीमैं आपको श्रीराम के नाम की दुहाई देता हूं कि अब आप उठिए। इसके लिए मैं आपके पैर पकड़ कर आपको मनाता

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥२९॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥३०॥

भावार्थ – अपने कर्तव्य पर हमेशा आगे बढ़ते रहने वाले भक्त हनुमानआप बहुत ही चंचल हो । हे हनुमान यदि आप हुंकार भी कर देते हैं तो राक्षसों की सेना भयभीत हो उठती

पने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥३१॥
यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥३२॥

भावार्थ – हे वीर हनुमान! अपने भक्तों का उद्धार कीजिए। आपका स्मरण करने से ही हमें आनंद की प्राप्ति होती हैंइस बजरंग बाण का पाठ करने से भी किसी का उद्धार ना हो तो आप ही बताएं उसका उद्धार भला कौन कर सकता

पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राण की ॥३३॥
यह बजरंग बाण जो जापै । तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे ॥३४॥

भावार्थ – जो भक्तगण इस बजरंग बाण का पाठ करते हैं, उसके प्राणों की रक्षा स्वयं हनुमान करने आते हैंजो भी इस बजरंग बाण का निरंतर जाप करता हैं उसे सभी तरह के भूत-प्रेत या बुरी आत्माओं के प्रभाव से मुक्ति मिलती

धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥३५॥

भावार्थ जो भी भक्तगण सच्चे मन से व संपूर्ण विधि का पालन कर इस बजरंग बाण का पाठ करता हैं तो उसके शरीर को किसी तरह का भी कष्ट नहीं होता हैं ।

दोहा

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

भावार्थ जो भी भक्तगण प्रेमपूर्वक आपके भजन करता हैं, जिसके हृदय में सदा आप निवास करते हैं, उसके सभी कार्य आप वीर हनुमान पूर्ण करते हैं और उसका उद्धार करते

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